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नेताओं के वेतन-दोहरी-तिहरी पेंशन, सुख-सुविधाओं में 10 प्रतिशत कटौती से 78 लाख EPS 95 पेंशनरों की चल जाएगी दाल-रोटी

  • सांसदों के पेंशन/वेतन पर 24% बढ़ोतरी करने के सरकार के निर्णय पर कोई क्या कहे। प्रतीत होता है सरकार कुछ करने के मूड में है ही नहीं।

सूचनाजी न्यूज, रायपुर। कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (Employee Pension Scheme 1995) के तहत न्यूनतम पेंशन का मामला उलझा हुआ है। मोदी सरकार पर लगातार शब्द बाण चलाए जा रहे हैं। ईपीएस 95 पेंशन राष्ट्रीय संघर्ष समिति रायपुर के अध्यक्ष अनिल कुमार नामदेव ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर जुबानी हमला बोला है।

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EPS 95 पेंशन पर Anil Kumar Namdeo ने सरकार से पूछा-क्या हुआ तेरा वायदा? उन्होंने कहा-स्वयं सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री मोदी जी ने प्रत्यक्ष रूप से न केवल आश्वाशन दिया था बल्कि अपने सचिव को शीघ्र कार्यवाही करने के भी निर्देश दिए थे।

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पिछ्ले दो मरतबा रूबरू प्रधानमंत्री जी से कमांडर अशोक राउत के नेतृत्व में NAC के प्रतिनिधियों ने भेंट कर पेंशनरों की तकलीफों से अवगत कराया गया था,उस पर शीघ्र कार्यवाही का आश्वासन भी दिया गया।

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पर 5 साल गुजर जाने के बाद भी कोई सकारात्मक नतीजे आज तक नहीं लिए जाने को आप क्या कहेंगे…? वायदा खिलाफी या कुछ और? सभी का कहना है कि देश को आज तक इतना सशक्त और कुशल प्रधानमंत्री नहीं मिला है। खासकर गरीबों और कमजोर तबके लिये तो भगवान स्वरूप ही हैं,पर 1000 से कम पेंशन पाने वालों के दुखदर्द उन्हें क्यूँ नहीं दिखाई दे रहे हैं।

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इसका क्या जबाव हो सकता है। किसी के समझ में नहीं आ रहा है। शायद सरकार के खजाने में उतना पैसा नहीं,यदि यही किसी का जबाव हो सकता है तो मुझे इस पर कतई विश्वास नहीं होगा। किसी को होना भी नहीं चाहिए। असल बात तो ये है कि पेंशनरों की कोई उपयोगिता न तो देश के लिये न उनकी राजनीति के लिये कुछ बची हुई है, तो उन पर व्यर्थ का सरकारी खजाना क्यूँ खाली किया जाए।

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जनसेवा जनहित सब कहने सुनने की बात है। जरा सोचिए यदि मुठ्ठी भर जनप्रतिनिथियों के वेतन और दोहरी तिहरी पेंशन, असीमित सुख-सुविधाओं में यदि 10 प्रतिशत की भी कटौती की जाए तो पूरे 77-78  लाख आर्थिक रूप से कमजोर EPS 95 के पेंशनरों की दाल रोटी आसानी से मुहैया करवाई जा सकती है।

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अनिल रामदेव कहते हैं कि जीने को थोड़ा आसान तो बनाया जा सकता है। इसके उलट वर्तमान में सांसदों के पेंशन/वेतन पर 24% बढ़ोतरी करने के सरकार के निर्णय पर कोई क्या कहे।

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प्रतीत होता है सरकार कुछ करने के मूड में है ही नहीं, तो क्या कीजिएगा, पत्थर में सर मारने के सिवाय। इतने के बाद भी लाखों पेंशनरों ने अभी भी प्रधानमंत्री जी के ” सबका साथ,सब का विकास,और सबके विश्वास” के नारे पर  विश्वास बनाये रखा है…। जो लाखो पेंशनर्स स्वर्ग सिधार गए, उनकी तो छोड़िये,लेकिन जो जिंदा बच गए हैं,उन्हें उम्मीद है कि उन्हें अपने अधिकारों से प्रधानमंत्री जी वंचित नहीं करेंगे।

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