गौ-संवर्धन और संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में सार्थक साबित हो रहा गौठान
छत्तीसगढ़ियों का अपना आईना होगा जिसमें अपनी सूरत चमकती दिखाई देगी, अन्य राज्य के लिए रोल माडल बनेगा अपना छत्तीसगढ़
विशेष लेख-हेमलाल प्रभाकर (सहायक जनसंपर्क अधिकारी)
दुर्ग। प्रकृति ने सचमुच बहुत खूबसूरत दुनिया बनाई है। प्रकृति द्वारा रचित सभी रचनाओं में अनोखा तालमेल है। सभी का विशेष महत्व है। संसार में अनेक जीव-जंतु, अनेक प्राणी, पेड़-पौधे हैं। ये सभी मिलकर मानव जीवन को खूबसूरत बनाते हैं। भारत में आदिकाल से नदी, गौ, जल को माता का दर्जा दिया गया है। प्रकृति की गोद ने हमे पोषित किया है। प्रकृति की अनमोल धरोहरों ने मानव जीवन को समृद्ध किया है। इसे संजोये रखने की नितांत जरूरत और आवश्यकता है। ताकि प्रकृति को नष्ट किए बगैर हम इसके द्वारा सहज रूप से प्रदत्त संसाधनों का उचित प्रयोग कर सतत् विकास की दिशा में बढ़ें। इसके लिए जल-जंगल, जमीन, पेड़-पौधे कीे संरक्षण की आवश्यकता है। इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण गौ पालन है, जो भारतीय संस्कृति एवं आर्थिक जीवन का आधार रहा है। अतएव गौ पालन को बढ़ावा देने और उसे संरक्षित और संवर्धन की आवश्यकता है।
मानव ने आधुनिकता और विकास की दौड़ में अपने मूल सिद्धांत के साथ छेड़-छाड़ कर खुद के साथ खिलवाड़ किया है। अपने आप को असुरक्षित किया है। प्राचीन ग्रंथों, देवकाल और मानव सभ्यता के विकास में पशु पालन का विशेष महत्व देखने को मिलता है। इन सब में गाय का सर्वश्रेष्ठ व विशेष महत्व रहा है। गाय पालन समृद्धि का सूत्र है। आज की पीढ़ी गौ के इस महत्व को भूलती जा रही है। गौ पालन को पेचीदा और झंझट से भरा काम समझकर लोग गौ पालन से दूर होते जा रहे हैं। ग्रामीण परिस्थितियां भी बदलाव की बयार से अछूती नहीं रही हैं। गांवों में भी अब परिवर्तन देखने में आ रहा है। दूध, दही, छाछ और दूध से बने मिष्ठान एवं अन्य व्यंजन की चाह तो सब रखते है, किन्तु गौ पालन कोई नहीं करना चाहता।
ऐसी परिस्थितियों में एक बार फिर से गौ पालन को बढ़ावा देने और संरक्षण व संवर्धन करने की आवश्यकता महसूस होने लगी है। छत्तीसगढ़ शासन ने गौ पालन के महत्व को बखूबी समझते हुए एक बार फिर से इस दिशा में योजना बनाकर काम करना शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ शासन ने नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना के माध्यम से गौठान निर्माण कर गौ संवर्धन की दिशा में काम किया है। गौ पालन होने से जहां लोगों को शुद्ध दूध उपलब्ध होगा। वहीं जैविक खाद के माध्यम से विषैली व विषाक्त तथा रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जा रहे फसलों पर रोक लगेगी। गौठान में गौ को रखकर उनका सही देखभल किए जाने से दूध उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी। देशी नस्ल के पशुओं का संवर्धन होगा।
नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना से गांवों में विकास की बयार आएगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनः जीवित और स्थापित करने का अवसर मुहैया होगा। भारत की आत्मा गांवों में बसती है। गांवों की मूलभूत अधोसंरचना को विकसित कर देश व प्रदेश को समृद्ध बनाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है। इस राज्य की मूल पहचान यहां की सामाजिक समरसता, आदिवासी संस्कृति,परम्परागत पशु आधारित कृषि से है। राज्य का समूचा ताना-बाना कृषि पर निर्भर करता है। किसान सदियों से परम्परागत तरीके से कृषि कर रहे है। सिंचाई की वृहद सुविधा नहीं होने से मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है। राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में छोटे-छोटे नदी नाले है। यह भी वर्षा आधारित है। पशु देशी किस्म के हैं। राज्य को विकसित करने के लिए इनमें सुधार की जरूरत है।
अब इस दिशा में राज्य सरकार की दूरगामी सोच से राज्य की मूल धरोहरों में शामिल नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी को बचाकर और इनमें नयापन लाकर इसे अग्रणी राज्य की श्रेणी में स्थापित करने का अभिनव प्रयास किया जा रहा है। राज्य की छोटे-छोटे नालों नदियों को बंधान कर सिंचाई की सुविधा विकसित हो सकेगी। बरसात के दिनों में संरक्षित जल का उपयोग साग-सब्जी की खेती के लिए किया जा सकेगा। इससे एक फसलीय खेती से निजात तो मिलेगा ही किसानों की आर्थिक आमदनी में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही जीवन स्तर में भी सुधार होगा। गावों में गौठान बनने से गायों के साथ-साथ अन्य पशुओं को भी भरपूर चारा-पानी मिलेगा। चारे पानी की समुचित व्यवस्था होने से दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ेगी। गांव-गांव और घर-घर में दुग्ध होगा। जिसे बेचकर भी आमदनी बढ़ाई जा सकेगी। पशुओं के गोबर से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा। एक बार फिर नये राज्य का अपना पहचान बनेगा। राज्य की अपनी पहचान बरकरार रहेगी। छत्तीसगढ़ियों का अपना आईना होगा जिसमें अपनी सूरत चमकती दिखाई देगी और अन्य राज्य के लिए रोल माॅडल बनेगा अपना छत्तीसगढ।