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डायबिटीज उपचार में क्रांति: सिर्फ एक इंजेक्शन से खत्म हो सकती है रोज़ की दवा की झंझट

       नई दिल्ली। डायबिटीज, खासकर टाइप 1 मरीजों के लिए एक नई उम्मीद सामने आई है। हालिया शोध और मेडिकल टेस्ट में ऐसे उन्नत इंजेक्शन और स्टेम सेल आधारित उपचार विकसित हुए हैं, जिनसे इंसुलिन पर निर्भरता कम हो सकती है और बीमारी को नियंत्रित करना आसान बन सकता है।

       अमेरिका की FDA ने Lantidra नामक थेरेपी को मंजूरी दी है, जिसमें डोनर से प्राप्त बीटा सेल्स को ट्रांसप्लांट किया जाता है। यह थेरेपी शरीर में इंसुलिन उत्पादन को फिर से सक्रिय कर सकती है, जिससे मरीजों को बार-बार इंजेक्शन लगाने की जरूरत कम होती है।

       इसी तरह, Vertex Pharmaceuticals ने Zimislecel स्टेम सेल थेरेपी तैयार की है। शोध में पाया गया है कि यह थेरेपी लेने वाले मरीजों में 1 वर्ष के भीतर इंसुलिन की जरूरत कम या खत्म हो गई। वहीं CRISPR तकनीक से जीन-संपादित पैनक्रियाटिक सेल्स का ट्रांसप्लांट भी इम्यून सिस्टम से बचते हुए इंसुलिन निर्माण में सफल रहा है।

       हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक ये नई थेरेपी मुख्यतः टाइप 1 डायबिटीज के लिए कारगर साबित हुई हैं। टाइप 2 डायबिटीज पर इनका प्रभाव सीमित है और इंसुलिन प्रतिरोध को पूरी तरह खत्म करने के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है।

       भारत में यह एडवांस उपचार वर्ष 2025 से चुनिंदा बड़े शहरों के चिकित्सा केंद्रों में उपलब्ध है। इसकी अनुमानित लागत 5.5 लाख से 9 लाख रुपये के बीच है। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक भारत में अभी सीमित रूप से उपलब्ध है, लेकिन आने वाले वर्षों में इसके विस्तार की संभावना बेहद मजबूत है।

       अगले 1–2 वर्षों में, यानी 2026–2027 तक, यह तकनीक देशभर के और अधिक अस्पतालों में उपलब्ध होने लग सकती है। साथ ही, भविष्य में किफायती विकल्प भी विकसित होने की उम्मीद है ताकि अधिक से अधिक मरीज इस एडवांस उपचार का लाभ उठा सकें।

       नए इलाज के आने से डायबिटीज मरीजों में नई आशा जगी है, क्योंकि यह उपचार जीवनस्तर सुधारने और इंसुलिन निर्भरता कम करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

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