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युवाओं का काम आत्म गौरव करना नहीं : राजेश बिस्सा

प्रिय युवाओं

सादर वंदे

 

तुम नहीं कमजोर, मजबूर मत समझना।

आवाज कर बुलंद, युवाओं का काम धधकना

       सशक्त युवा वह सैलाब है, जिसे रोका नहीं जा सकता है। अगर आप शसक्त नहीं है, तो इसका सीधा  मतलब है, आप मजबूर हैं। पराधीन हैं। दूसरे की दया पर निर्भर हैं।

       क्या युवाओं का जीवन सिर्फ आत्मगौरव महसूस करने से चल जायेगा? क्या जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, राष्ट्र, सीमाएं, परंपरा, संस्कृति, देशी, विदेशी ईत्यादि जैसे मुद्दों पर दिन दिन भर चर्चा करने, संदेशों को कॉपी पेस्ट कर आदान प्रदान करने मात्र से व्यवस्थित व सफल हो जायेगा? अगर नहीं, तो विचार कीजिये भागते समय के बीच आप कहां खड़े हैं? कहां जा रहे हैं? आपकी जीवन यात्रा कहीं इन्ही विषयों के मध्य खोती तो नहीं जा रही है?

       युवाओं को अधिकार एवं कर्तव्य ये दो ऐसी महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त है, जो उसे सामर्थ्यवान बनने का अवसर प्रदान करती है।

1 अधिकार – वह ताकत है जो संवैधानिक व्यवस्था, कानून व नियम कायदों से मिलती है।

2 कर्तव्य – वो दायित्व है जो हमें स्व प्रेरणा, नैतिक मूल्यों व कानून से प्राप्त होते है।

       यह दोनों एक दूसरे के पूरक है। अगर आपके पास अधिकार नहीं है तो आप कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते। और अगर आप कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते तो राष्ट्र, समाज, परिवार तथा अपने को मजबूत नहीं कर सकते।

       मजबूर व हताश युवा कभी चुनौती नहीं बन सकता। यह बात व्यवस्था ने बहुत अच्छे तरीके से समझ ली है। इसलिये अब जवाबदार व्यवस्थाऐं हमारे संवैधानिक अधिकारों पर भी नियंत्रण के प्रयास में लग गयी हैं।

हमें संवैधानिक रूप से छह मूल अधिकार प्राप्त हैं –

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद14से अनुच्छेद 18),
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद19से 22),
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद23से 24),
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद25से 28),
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद29से 30)
  6. संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद32)

       इनमें से “जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” तो वह अधिकार है, जिसे राष्ट्रीय आपातकाल में भी स्थगित नहीं किया जा सकता। आज हम देख रहे हैं कि डंके की चोट पर व्यवस्थाएं आपके अधिकारों पर अतिक्रमण करने के लिए आगे बढ़ चुकी है। आपके अधिकारों को कुचला जा रहा है। आप कर्तव्यों का पालन न कर पाए ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है। सतर्क हो जाइए। वर्ना जिंदगी भर घुटने टेके रहने होगा। हाथ फैलाये रखना होगा।

       यह विसंगति सिर्फ इसलिये हावी हो रही है क्योंकि युवाओं ने व्यवस्था के प्रति अंधश्रद्धा पाल रखी है। मौन धारण कर रखा है। प्रश्न करना बंद कर दिया है। व्यवस्थायें आपको गंभीरता से लें इसके लिये जागरुक होना होगा। आपको संकल्पित होना होगा की अपने अधिकारों को कुचलने नहीं देंगे और कर्तव्यों के पालन से पीछे नहीं हटेंगे।

जय हिंद …

राजेश बिस्सा

लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।

रायपुर

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