एक देश – एक बाजार का निर्णय देश व किसानों के लिये आत्मघाती कदम : बिस्सा
रायपुर। वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेश बिस्सा ने कहा की “एक देश – एक बाजार” के नारे के साथ केंद्र सरकार किसानों व राष्ट्र का सत्यानाश करने की दिशा में बढ़ चुकी है। जिस तरह वो एक के बाद एक गैर जवाबदाराना निर्णय लेती जा रही है तथा उसे सत्तर सालों की गलती के सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही है यह बहुत घातक है।
बिस्सा ने बताया की केंद्र सरकार की कैबिनेट के निम्न निर्णय –
- कृषि उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य संवर्धन एवं सहायता अध्यादेश2020 को मंजूरी दी है। इसके तहत किसान, व्यापारी, अनाज, तेल, तिलहन, दाल, आलू, प्याज इत्यादि का अनलिमिटेड स्टॉक कर सकेंगे।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम1955 में संशोधन को मंजूरी दी है जिससे अनाज दलहन आलू प्याज सहित विभिन्न खाद्य वस्तुओं को नियमन के दायरे से बाहर किया जा सके। किसान एक्सपोर्ट कर सकेगा। जितना चाहे स्टोर कर सकता है।
यह दोनों निर्णय केंद्र सरकार की कैबिनेट ने बहुत हल्के से ले लिये है जो हानिकारक है। अगर उन्होने जानबूझ कर निर्णय लिया है तो यह “राष्ट्र-द्रोही” कदम है और अगर अनजाने में ले लिया है तो यह “राष्ट्र-घाती” कदम है।
इन निर्णयों का दीर्घकालीन दुष्प्रभाव यह होगा की आने वाले समय में हमारा पूरा कृषि क्षेत्र देशी व विदेशी निजी निवेशकों का गुलाम बन कर रह जायेगा। किसान मजदूर बनकर रह जायेगा। उसकी स्थिति बदतर बने रहेगी तथा आम जनता मंहगे में कृषि उत्पाद खरीदने को मजबूर हो जायेगी। देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रभावित हो जायेगी।
एक ओर नीति आयोग तक स्वीकार कर चुका है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता। यह समाचार हम देश के विभिन्न कोनों से सुनते भी रहते हैं। जब सरकारी नियंत्रण के बाद भी यह हाल हैं तो दलालों को सरकारी छूट मिल गयी तो किसानों का क्या होगा सोचा जा सकता है।
निजी खरीदारों द्वारा भारी मात्रा में जमाखोरी किए जाने व मुनाफे के लिये अधिकांश अन्न निर्यात किये जाने दशा में सरकारी खाद्य भंडारण और खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो जायेगी। आज फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया के पास 524 लाख टन का अन्न भंडार है। जो आपदा से बचने का बहुत बड़ा साधन है। यदि निजी खरीददारों के हाथों में अन्न चला गया तो भविष्य में अकाल, महामारी जैसी स्थितियों में अनाज की आपूर्ति की स्थिति बहुत विषम हो सकती है।
बिस्सा ने कहा की केंद्र सरकार से देश की अर्थव्यवस्था संभालने में चूक हो चुकि है जिसका खामियाजा देश भुगतने की स्थिति में आ चुका है। अच्छा यह होगा की अब वह बिना हड़बड़ाये धैर्य के साथ सभी पक्ष विपक्ष के लोगों व अर्थशास्त्रियों से व्यापक चर्चा कर निर्णय लें जिससे देश की व्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिले।