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छत्तीसगढ़

खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे

       रायपुर। आज यही कहावत एक महत्वपूर्ण सत्यता को प्रकट कर रही है, सुश्री सरोज पांडेजी। उनकी राजनीतिक सक्रियता और महत्व दिनों-दिनों कम हो रहे हैं, जिसका उदाहरण उन्हें प्रदेश की राजनीति से हटकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर स्थानांतरित करना है। आज वे खुद ही विचार कर रही हैं कि वे विधानसभा चुनाव में कहां से लड़ेंगी और क्या वे लड़ पाएंगी, यह संदेह में है।

       उनकी आंतरिक अशांति दिखाई दे रही है और वे केवल ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता का इस्तेमाल कर रही हैं।

       वह पद, जिस पर वर्तमान में दीपक बैज जी कार्यरत हैं, उस पद पर बैठे पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया, देश और समाज के विकास में योगदान किया, संस्कृति और समाज की सुरक्षा और सुधार के लिए काम किया है। लेकिन सरोज पांडेजी ने उस पद को अपमानित किया है।

       हमारे कांग्रेस पार्टी में आयु के साथ ही काबिलियत को देखा जाता है, और इस्लिये निस्संदेह दीपक बैज जी को पार्टी के अध्यक्ष के रूप में चयन किया गया है।

       सरोज जी ने अपने वक्तव्य में कहा है कि चाहे बहन छोटी हो या बड़ी, विवाहित हो या अविवाहित, उनमें मातृभावना होती है। और उन्होंने यह भी कहा कि माननीय मुख्यमंत्री जी के वक्तव्य से उनका अपमान हुआ है। तो सरोज जी को मै कहना चाहती हुं कि हमारे समाज में पिता के जाने के बाद भाई का महत्व होता है, वो पिता की भूमिका निभाता है। उनमें भी पितृ भवना जन्म से होती है। और आप चिंता मत किजिये हमारे हमारे पार्टी के नेताओं को यह जिम्मेदारी अच्छे से निभानी आती है।

       आपने राखी के त्योहार को भी राजनीतिक उद्देश्यों का एक औजार बना लिया है, पर मुख्यमंत्री जी सुनिश्चित करेंगे कि आपकी सुरक्षा और सम्मान की कोई कमी नहीं होगी। आप उनकी बहन हैं और आप अविवाहित हैं इसलिये आप उनकी बेटी भी रहेगी।

       परंतु मैं और देश की जनता आपसे, आपकी भाजपा सरकार से और आपके पार्टी के सदस्यों से पूछना चाहते हैं कि क्या देश में सिर्फ 8-10 महिलाएं ही हैं, या जो महिलाएं भाजपा के नेतृत्व में हैं, सिर्फ वही महिलाएं हैं। जिनका मान-सम्मान आपके और आपके पार्टी के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। जब बात स्मृति ईरानी, कंगना रनौत, हेमा मालिनी और अन्य भाजपा की महिला नेत्रियों की आती है, तो सब लोग मान-सम्मान और संस्कार की बात करते हैं।

       परंतु हाथरस की घटना, मणिपुर के आदिवासी महिलाओं का निर्वस्त्र करना, बलात्कार की घटनाएँ, महिला पहलवान की धरना, बस्तर में महिलाओं के साथ बलात्कार, फर्जी एनकाउंटर- इन सभी मामलों में आपकी और आपके पार्टी के लोगों की किसी ने आवाज उठाने की कोशिश नहीं की। यहां तक कि आप उन्हें समर्थन देने में व्यस्त थे। क्या आपकी नैतिकता केवल नाम मात्र ही बची है?

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