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झीरम में दिग्गज कांग्रेस नेताओं पर हमले की सीबीआई जांच नहीं हुई और न ही एनआईए जांच हो सकी

सन्देह के घेरे में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह 

       खिर कौन चाहता है कि झीरम षडयंत्र की जांच न हो? आखिर  क्यों रमन सिंह ने सीबीआई जांच न होने की सूचना दो साल तक छिपाई? और क्या भाजपा को डर है कि झीरम में सुपारी किलिंग की कलई खुल जाएगी?

       ज्ञात हो कि 25 मई, 2013 को बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर सुनियोजित हमला किया। यह दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में काले दिन की तरह दर्ज हुआ क्योंकि वह भारत का अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक नरसंहार था। प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जी, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला जी, बस्तर टाइगर कहलाने वाले वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा जी, पूर्व विधायक उदय मुदलियार जी, युवा नेता योगेंद्र शर्मा जी और उदयीमान नेता दिनेश पटेल सहित कांग्रेस के 13 नेता शहीद हो गये। इसमें कुल 29 लोगों की जान गई और दर्जनों घायल हुए। इस घटना की जांच एनआईए को सौंपी गई। जांच शुरु भी हुई.। मार्च, 2014 में एनआईए ने नक्सलियों के शीर्ष नेताओं गणपति और रमन्ना को भगोड़ा घोषित करवाया, अख़बारों में विज्ञापन प्रकाशित करवाए और उनकी संपत्ति ज़ब्त करने की सूचना जारी की।

       फिर मई, 2014 में केंद्र में यूपीए की जगह एनडीए की सरकार आ गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सत्ता संभाल ली। जांच पटरी से उतरनी शुरु हुई और अगस्त आते आते तक जांच की दिशा बदल गई। सितंबर, 2014 में जब पहली चार्जशीट दाखिल हुई तो उसमें गणपति और रमन्ना के नाम ग़ायब थे। अर्थात देश के सबसे बड़े और घातक नक्सली हमले में नक्सलियों के शीर्ष नेताओं को बरी कर दिया गया और दंडकारण्य अंचल के नक्सली नेताओं के नाम ही षडयंत्रकारियों की तरह रखे गए। इसके बाद की जो भी जांच हुई उसमें इस बात की जांच हुई ही नहीं कि इस दिल दहला देने वाली घटना, जिसमें कांग्रेस नेताओं की एक पूरी पीढ़ी ख़त्म हो गई, का षडयंत्र किसने रचा था? एनआईए ने कई महत्वपूर्ण लोगों से बयान तक नहीं लिया और अक्टूबर, 2015 को पूरक आरोप पत्र पेश करते हुए विशेष अदालत से कहा कि वह सुनवाई शुरु करे क्योंकि जांच पूरी हो गई है। एनआईए की वेबसाइट पर लगातार लिखा जाता रहा कि जांच पूरी हो गई है।

       सबसे बड़ा सवाल यह है कि षडयंत्र किसने रचा? किसके कहने पर रचा? कुछ महीनों बाद होने वाले चुनाव में इससे किसको फ़ायदा होने वाला था? इन सबकी कोई जांच नहीं की गई।

जांच आयोग के दायरे में भी षडयंत्र नहीं

       तत्कालीन राज्य सरकार ने हमले के तीसरे दिन अपनी ओर से एक जांच आयोग बनाया था। जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग ने पिछले बरसों में अपनी ओर से बयान दर्ज किए हैं और अभी आयोग का कार्य जारी है। लेकिन यह आश्चर्य का विषय है कि इस आयोग के लिए सरकार की ओर से जो ‘टर्म्स ऑफ़ रेफ़रेंस’ यानी कार्य सीमा तय की गई उसमें घटना के षडयंत्र की जांच नहीं थी।

सीबीआई जांच को भी टाला और फ़ैसला छिपाकर रखा

       उस समय कांग्रेस की ओर से विधानसभा में और विधानसभा के बाहर लगातार मांग की जाती रही कि घटना के षडयंत्र की जांच की जाए। लगातार बढ़ते दबाव के बाद वर्ष 2016 के बजट सत्र के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जी ने घोषणा की थी कि वे झीरम के षडयंत्र की सीबीआई जांच करवाएंगे।  राज्य सरकार ने  29 मार्च, 2016  को सीबीआई जांच की अधिसूचना जारी की। लेकिन 13 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन आने वाले कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने पत्र लिखकर राज्य सरकार से खेद जता दिया कि सीबीआई जांच की ज़रूरत नहीं है। विभाग ने लिखा कि गृह मंत्रालय और सीबीआई से चर्चा के बाद पाया गया कि चूंकि घटना की जांच एनआईए कर चुकी है इसलिए अब सीबीआई जांच की आवश्यकता नहीं है। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने यह जानकारी न विधानसभा को दी, न कांग्रेस पार्टी को और न छत्तीसगढ़ की जनता को कि सीबीआई जांच से मोदी सरकार ने इनकार कर दिया है। जब वे चुनाव हार गए और राज्य में कांग्रेस की सरकार आ गई तब दिसंबर, 2018 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को यह जानकारी मिली कि सीबीआई जांच से इनकार हो चुका है।

एसआईटी जांच से भी परेशानी है केंद्र सरकार को

       वर्तमान भूपेश सरकार को जब पता चला कि तत्कालीन भाजपा की राज्य और केंद्र सरकारों ने मिलकर षडयंत्र की जांच को टाल दिया है तब राज्य की नई कांग्रेस सरकार ने इस षडयंत्र की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का ऐलान किया गया। राज्य सरकार ने एनआईए को पत्र लिखकर कहा कि वह जांच की अंतिम रिपोर्ट और तमाम दस्तावेज़ राज्य सरकार को सौंप दे जिससे कि षडयंत्र की जांच की जा सके। राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को वो दस बिंदू भी बताए गए जिसकी जांच एनआईए ने नहीं की है। लेकिन एनआईए ने दस्तावेज़ देने से इनकार करते हुए कहा है कि अभी जांच जारी है और कई पूछताछ शेष हैं इसलिए दस्तावेज़ नहीं सौंपे जा सकते। जो एनआईए अदालत से कह चुकी कि जांच पूरी हो गई. जो एऩआईए अपनी वेबसाइट पर लिख रही थी कि जांच पूरी हो गई, उसी एनआईए ने एसआईटी गठन के बाद एकाएक फिर से जांच शुरु कर दी। अब एनआईए जांच की लीपापोती करने में लगी हुई है।

नया एफ़आईआर और उस पर भी आपत्ति

       स्वर्गीय उदय मुदलियार के सुपुत्र जितेंद्र मुदलियार ने गत 25 मई को दरभा के थाने में एक नई एफ़आईआर दर्ज करवाई और षडयंत्र की जांच की मांग की। लेकिन यह भी एनआईए को मंज़ूर नहीं है। एनआईए ने 16 जून को विशेष अदालत में एक याचिका दायर करके कहा है कि इस एफ़आईआर की जांच भी एनआईए को सौंप दी जाए। तो केंद्र के मातहत काम कर रही एनआईए नहीं चाहती कि षडयंत्र की कोई भी जांच हो।

कांग्रेस ने उठाये सवाल

       कांग्रेस पार्टी जानना चाहती है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के आते ही एनआईए की जांच की दिशा क्यों बदल गई? क्यों नक्सलियों के शीर्ष नेताओं के नाम पूरक आरोप पत्र में शामिल नहीं किए गए? राज्य द्वारा गठित जांच आयोग की कार्य सूची में षडयंत्र को क्यों शामिल नहीं किया गया? केंद्र की भाजपा सरकार ने किसके कहने पर सीबीआई जांच से इनकार किया? जब केंद्र सरकार ने सीबीआई जांच से इनकार कर दिया था तो रमन सिंह ने यह जानकारी दो साल तक छिपाकर क्यों रखी? अगर षडयंत्र की जांच से डर नहीं लगता तो एनआईए के ज़रिए भाजपा की सरकार क्यों राज्य की ओर से की जा रही जांच को रोकना चाहती है? क्या यह सच नहीं है कि 2013 के चुनाव के परिणाम जब साफ़ दिखने लगे थे तो कांग्रेस से शीर्ष नेतृत्व को रास्ते से हटाने के लिए झीरम कांड एक ‘सुपारी किलिंग’ थी?

क्या भाजपा नेताओं के हैं माओवादियों से संबंध?

क्यों बचना चाहते हैं भाजपा नेता झीरम के षडयंत्र की जांच से?

       ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के माओवादियों या नक्सलियों से गाढ़े संबंध रहे हैं। वे लगातार संपर्क में रहे हैं और उनके साथ मिलकर राजनीतिक लाभ उठाते रहे हैं। हाल ही में दंतेवाड़ा में भाजपा के ज़िला उपाध्यक्ष जगत पुजारी को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने नक्सलियों को ट्रैक्टर दिलवाया और अन्य मदद की। वर्ष 2013 में दंतेवाड़ा में ही भाजपा के एक और उपाध्यक्ष शिव दयाल सिंह तोमर की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बाद में जब माओवादी नेता पोडियाम लिंगा गिरफ़्तार हुआ तो पता चला कि तोमर ने नक्सलियों को पैसे देने का वादा किया था लेकिन बाद में मुकर गया इसलिए उसकी हत्या हुई।

       यह मालूम होना चाहिये कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले नक्सली नेता पोडियाम लिंगा को सीआरपीएफ़ ने गिरफ़्तार किया था। मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि उसने पुलिस के सामने बयान दिया था कि वह भाजपा विधायक रहे भीमा मंडावी के गांव तोयलंका का रहने वाला है और रिश्ते में मंडावी का भतीजा है और उनकी मदद करता रहा है। रिपोर्ट के अनुसार उसने स्वीकार किया कि वह तोमर से लगातार मिलता रहा और चुनावों में उनकी मदद की. उसने पुलिस को यह भी बताया था कि वर्ष 2011 के लोकसभा उपचुनाव में नक्सलियों ने दिनेश कश्यप की भी मदद की थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दो दिन पहले एक नक्सली हमले में भीमा मंडावी की मृत्यु हो गई थी। वर्ष 2014 में रायपुर विमानतल पर एक भाजपा सांसद के वाहन में सवार एक ठेकेदार धर्मेंद्र चोपड़ा को गिरफ़्तार किया गया था। उसने पुलिस को बयान दिया था कि वह सांसद और नक्सलियों के बीच तालमेल का काम करता था।

झीरम के षडयंत्र की जांच न होने की असली वजह

       भाजपा के नक्सलियों के संबंध का ही परिणाम था कि वर्ष 2008 के समय जब नक्सलियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई सबसे तेज़ थी और सलवा जुड़ुम चल रहा था तब भी बस्तर की 12 में से 11 सीटें भाजपा ने जीती थीं। यही गठजोड़ बस्तर टाइगर कहलाने वाले महेंद्र कर्मा की हार के लिए भी ज़िम्मेदार था। लगातार मिल रहे सबूत के आधार पर लगता है कि वर्ष 2013 के चुनाव से पहले कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर जो कथित नक्सली हमला हुआ वह भी सामान्य नक्सली हमला नहीं था। अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उससे साफ़ लगता है कि जानबूझकर कांग्रेस की रैली को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई गई और रोड ओपनिंग पार्टी तक नहीं लगाई गई। दस्तावेज़ बताते हैं कि एनआईए ने पहले नक्सलियों के दो बड़े नेता गणपति और रमन्ना को अभियुक्त बनाया था लेकिन पूरक चार्जशीट दाखिल करते समय उनको अभियुक्तों की सूची से हटा दिया। वर्ष 2016 में कांग्रेस के दबाव पर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने स्वीकार कर लिया था कि झीरम नरसंहार की सीबीआई जांच करवाई जाएगी लेकिन केंद्र सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया। डॉ रमन सिंह वर्ष दिसंबर 2016 से 2018 के चुनाव तक यह जानकारी छिपाए रखी कि केंद्र सरकार ने सीबीआई जांच से इनकार कर दिया है।

कांग्रेस चाहती है जवाब

       कांग्रेस इन सारे सवालों का जवाब चहती है कि क्यों भाजपा के नेताओं से ही नक्सलियों के संबंध उजागर होते रहे हैं? क्या बस्तर में भाजपा नक्सलियों के भरोसे ही राजनीति नहीं करती रही है? क्यों भाजपा के प्रदेश नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ज़िला स्तर के नेताओं और विधायकों-सांसदों को नक्सलियों से सांठगांठ की स्वीकृति देते रहे। नक्सलियों के शीर्ष नेताओं गणपति और रमन्ना के नाम किसके कहने से हटाए गए, डॉ रमन सिंह के या भाजपा के केंद्रीय नेताओं के? केंद्र की भाजपा सरकार ने किसके कहने से सीबीआई जांच से इनकार किया? डॉ रमन सिंह की इसमें क्या भूमिका थी? डॉ रमन सिंह की भूमिका अगर नहीं थी तो उन्होंने दो वर्ष तक यह जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की? झीरम के षडयंत्र की जांच से भाजपा के नेता क्यों बचना चाहते हैं?

आईये षड़यंत्र जाने तिथिवार

       ज्ञात हो कि Oct/2015 को NIA ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश की और अदालत से कहा कि वह सुनवाई शुरु करे क्योंकि जांच पूरी हो गई है। दिनांक  23/3/16 को राज्य की रमन सिंह सरकार को विपक्ष के दबाव में विधानसभा में घोषणा करनी पड़ी कि झीरम हमले की जांच सीबीआई को सौंपी जाएगी। दिनांक 29/03/16 को राज्य सरकार ने झीरम नरसंहार की जांच सीबीआई से करवाने की अधिसूचना जारी की। दिनांक 13/12/16 को DoPT ने राज्य सरकार को पत्र भेजा कि सीबीआई और गृहमंत्रालय से विचार विमर्श के बाद फ़ैसला किया गया कि NIA ने जांच पूरी कर ली है और इस मामले की आगे किसी तरह की जांच की ज़रुरत नहीं है। दिनांक 17/2/18 को सीबीआई जांच के विषय में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को पत्र लिखकर पूछा कि सीबीआई जांच के बारे में केंद्र सरकार ने क्या फ़ैसला किया है? लेकिन राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया. डॉ रमन सिंह ने 13/12/16 को केंद्र सरकार की ओर से आए पत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। इस बीच एनआईए ने अपनी वेबसाइट पर सूचना लगा दी थी कि झीरम नरसंहार की जांच पूरी हो चुकी है।

       चुनाव उपरांत दिनांक 31/12/19 को| राज्य की नई सरकार को पता चला कि केंद्र सरकार ने झीरम की सीबीआई जांच से 13/12/16 को ही इनकार कर दिया था। दिनांक 02/01/2019 को राज्य सरकार ने झीरम नरसंहार की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया. बस्तर के आईजी के नेतृत्व में बनी जांच समिति. एनआईए को जांच के दस्तावेज़ सौंपने का अनुरोध किया गया। दिनांक 12/02/2019 को एनआईए ने एसआईटी को जांच के दस्तावेज़ देने से इनकार कर दिया और कहा कि अभी कई लोगों की जांच बाक़ी है इसलिए दस्तावेज़ सौंपे नहीं जा सकते। दिनांक 02/ 09/2019 को हमले के समय काफ़िले में शामिल दौलत रोहड़ा और विवेक वाजपेयी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और मामले की जांच एसआईटी को सौंपने की बात कही। इस पर हाईकोर्ट ने एनआईए और केंद्रीय गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया। दिनांक 26/09/19 को राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर मांग की थी कि एनआईए जांच से जुड़े दस्तावेज़ राज्य में गठित एसआईटी को उपलब्ध करवाए जांच. राज्य सरकार ने एनआईए की जांच में दस खामियां गिनवाईं। एनआईए ने रायपुर में फिर अपना कामकाज शुरु कर दिया और जांच की औपचारिक कार्रवाई शुरु कर दी। दिनांक 26/05/2020 को झीरम नरसंहार में मारे गए कांग्रेस नेता उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार ने दरभा थाने में एक एफ़आईआर दर्ज करवाई जिसमें कहा गया है कि एनआईए की जांच से वे संतुष्ट नहीं है क्योंकि एनआईए कई बिंदुओं पर जांच नहीं कर रही है। दिनांक 16/06/2020 को एनआईए ने जगदलपुर की विशेष एनआईए अदालत में याचिका लगाकर आवेदन किया कि मई, 2020 में एफ़आईआर की जांच भी एनआईए को सौंप दी जाए क्योंकि इसकी जांच एनआईए कर रही है।

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