स्वः महेन्द्र कर्मा पूरे देश में आदिवासियों के आवाज थे : अटल श्रीवास्तव
बिलासपु। स्वः महेन्द्र कर्मा की जन्म तिथि पर उन्होंने स्मरण करते हुए प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने कहा कि की पूरे देश में आदिवासियों के अधिकार और जन-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं में स्व. महेन्द्र कर्मा शामिल थे। स्व. कर्मा पूरे देश में आदिवासियों की आवाज बन चुके थे। बस्तर के दंतेवाड़ा में 5 अगस्त 1950 को एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर वे बचपन से ही पढ़ाई और सघर्श में आगे बढ़ते रहे युवा कर्मा की पहचान क्षेत्र में कामरेड महेन्द्र कर्मा के रूप में हुई, पहली बार वामपंथ के राह पर चलते हुए सी.पी.आई से विधायक बने फिर उन्होंने कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस के रास्ते पर चलते हुए विधायक, सांसद, मंत्री, और छत्तीसगढ़ बनने के बाद तीन साल तक छत्तीसगढ़ के पहली सरकार में तेज तरार मंत्री के रूप में पहचान बनाई फिर 2003 से 2008 तक छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे। उसी बीच बस्तर नक्सलवाद व नक्सली आतंक का उन्होंने डट कर मुकाबला किया सलवा जुडूम नामक आंदोलन चलाकर अहिंसा के रास्ते उन्होंने हिंसक नक्सलियों को सीधे टक्कर दी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने सलवा जुडूम के इस नेता को सुरक्षा प्रदान करने में गंभीरता नहीं दिखाई और अहिंसावादी नक्सल विचार धारा के घोर विरोधी स्व. महेन्द्र कर्मा हिंसा में मारे गये। भारतीय जनता पार्टी की रमन सरकार की नाकामी कहे या षड्यंत्र पूरी की पूरी सरकार आदिवासी नेता को नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकी।
आज भी कांग्रेस अपने स्व. नेता के रास्ते पर चलकर आदिवासियों के हित में अनेकों फैसले कर रही है। स्व. महेन्द्र कर्मा के मनसा अनुरूप ही बस्तर भुपेश बघेल सरकार आदिवासियों के हित में लगातार फैसले कर रही है। आदिवासियों की जमीन वापस करना तेन्दूपत्ता के बोनस में लगातार वृद्धि करना आदि कार्य उनके नाम पर चलाये जा रहे है। मुख्यमंत्री भुपेश बघेल लगातार कर्मा जी के विचारों को लेकर बस्तर में आदिवासियों हितों में कार्य कर रहे है। स्व. महेन्द्र कर्मा छत्तीसगढ़ में अपने कार्यो और विचारों के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे।
स्व. महेन्द्र कर्मा को प्रदेश के सभी वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने राजीव भवन रायपुर और सभी जिला मुख्यालयों में पहुंचकर अपनी श्रद्धांजली अर्पित की है। प्रदेश प्रवक्ता अभयनारायण राय ने भी महेन्द्र कर्मा को श्रद्धांजली व्यक्त करते हुए कहा कि श्री महेन्द्र कर्मा आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों के लिए खुल कर कार्य करते थे। वे आदिवासियों के स्तर को उंचा उठाने को लेकर लगातार संवैधानिक दायरे में रहकर कार्य करने के अपील करते रहे। आज उनकी गिनती आदिवासियों के बीच क्रांतिकारी नेता के रूप में की जाती है। झीरम के सामुहिक नरसंहार में 25 मई 2013 को शहिद हो गये थे।