यूपी के साथ गुजरात में बड़े बदलाव कर सकती है बीजेपी, जानें आठ बड़े कारण
अहमदाबाद:
उत्तर प्रदेश में बदलाव की अटकलें के बीच बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में बड़ी सर्जरी की संभावना है। गुजरात में पिछले काफी समय से सरकार और संगठन में फेरबदल लंबित हैं। बीजेपी 15 अगस्त तक राज्य में कई नए बदलाव कर सकती है, ताकि राज्य में कांग्रेस के मजबूत होने की चुनौती का सही से मुकाबला किया जा सके। लोकसभा में विपक्ष के नेता बने राहुल गांधी ने 2027 में गुजरात में हराने की चुनौती फेंकी है। गुजरात विधानसभा में बीजेपी का संख्याबल 180 सीटों में 161 का है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय नेतृत्व संगठन के साथ सरकार में जरूरी बदलाव कर सकता है। गुजरात बीजेपी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल अब केंद्र में मंत्री हैं। वह पहले ही एक पद और एक व्यक्ति के सिद्वांत के अनुसार जिम्मेदारी से मुक्त करने की अपील कर चुके हैं। इसके साथ ही संगठन में कई बड़े पद खाली पड़े हैं। कैबिनेट में फेरबदल होने पर कांग्रेस से आए अर्जुन मोढवाडिया से जैसे बड़े नेताओं को मंत्रीपद मिल सकता है। अब देखना है यह कि बीजेपी कांग्रेस से आए कितने नेताओं को मंत्री बनाती है।
सितंबर में पूरे होंगे तीन साल
गुजरात में भूपेंद्र पटेल सितंबर महीने में बतौर मुख्यमंत्री तीन साल पूरे करेंगे। पार्टी ने 2022 के चुनावों को मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को फेस बनाकर जीता था। पार्टी ने 156 सीटें मिली थीं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के ऊपर करीब तीन साल के कार्यक्रम में व्यक्तिगत तौर पर कोई आरोप नहीं लगा है, लेकिन राज्य में पिछले तीन सालों में हुए तीन बड़े हादसों ने उनके लिए चुनौती खड़ी की है। मोरबी,हरनी और राजकोट हादसों में स्थनीय निकाय जिस तरह से कठघरे में खड़े हुए हैं। उसने उनकी नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। इन मामलों में सरकार ने कार्रवाई की है लेकिन सरकार की कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने जो टिप्पणियां की हैं। उससे बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार की किरकिरी हुई। राज्य में मजबूत सरकार होने के बाद भी लोगों के बीच प्रशासन में चुस्ती नहीं दिख पाई है, जिसकी अपेक्षा लोगों ने की थी। ऐसे में मुमकिन है बीजेपी संगठन के साथ सरकार में बड़े बदलाव करे और कुछ मंत्रियों की छुट्टी भी हो जाए।
इन कारणों ने सरकार-संगठन में बदलाव की चर्चा
1. बड़े हादसों से फजीहत: गुजरात में मोरबी ब्रिज हादसे के बाद वडोदरा हरणी झील में 12 बच्चों और दो शिक्षकों की डूबे से मौत हो गई थी। इसके बाद राजकोट अग्निकांड में 27 लोगों की मौत। तीनों मामलों में गुजरात हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और कठोर टिप्पणियां कीं।
2. स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार: राज्य की बड़ी नगर निगमों और नगर पालिकाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। बड़े हादसों की जांच में निगमों की लापरवाही उजागर हुई है। भ्रष्ट अधिकारियों पर जनता कड़ी कार्रवाई चाहती है। जो अभी तक नहीं हुई है।
3. मंत्रियों/विधायकों पर हावी अधिकारी: भूपेंद्र पटेल सरकार के मंत्री अपने काम से पहचान नहीं बना पाए हैं। ऐसे में जनता के बीच संदेश है कि अधिकारी राज हावी है। कई विधायक कुछ मुद्दों पर मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर असंतोष व्यक्त कर चुके हैं।
4. समन्वय की कमी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब राज्य के सीएम थे तब कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि सरकार और संगठन में कमी झलकी हो, लेकिन विजय रुपाणी के सीएम बनने के बाद से लगातार सरकार और संगठन में पहले जैसा समन्वय नहीं दिखा है।
5. बनासकांठा ही हार: लोकसभा चुनावों में बीजेपी अपने गढ़ गुजरात में क्लीन स्वीप नहीं कर पाई। उत्तर गुजरात में उसे बनासकांठा की सीट गंवानी पड़ी। इसके साथ ही कई अन्य सीटों पर कांग्रेस करीबी मुकाबले में पहुंची
6. राजकोट बंद: राजकोट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। पीएम मोदी ने चुनावी राजनीति में यहीं से कदम रखा था। टीआरपी गेमजोन के पीड़ितों को न्याय की मांग के साथ कांग्रेस पूरे राजकोट शहर के बंद कराने में सफल रही।
7. कांग्रेस की 2027 की चुनौती: कांग्रेस ने 2027 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने की हुंकार भरी है। कांग्रेस के इसके लिए राज्य में सक्रिय भी हो गई है। जिग्नेश मेवाणी, पालभाई अम्बालिया और सेवादल के बड़े नेता लालजी देसाई ग्राउंड जीरो पर हैं। वे ऐसे मुद्दों को ही उठा रहे हैं। जो जनता के करीब है।
8. पंचायत चुनाव और ओबीसी वोट: गुजरात में विधानसभा चुनाव भले ही अभी दूर हैं लेकिन पंचायत चुनाव इस साल के आखिर तक होने हैं। कांग्रेस इन चुनावों में अपनी जमीन मजबूत करने के लिए न्याय यात्रा निकालने की तैयारी कर रही है। इन चुनावों में पहली बार ओबीसी आरक्षण लागू होगा। ऐसे में इन चुनावों में ओबीसी वोट बैंक पॉलिटिक्स हावी होने की उम्मीद है। इन चुनावों में जिस पार्टी का पलड़ा भारी होगा। उसे विधानसभा चुनावों में लाभ मिलेगा।
सर्जरी पार्ट-2 की तैयारी
सितंबर, 2021 में बीजेपी ने विजय रुपाणी को हटाकर जनता की नाराजगी को दूर कर लिया था। पार्टी इस बार के बदलाव में भी परफॉरमेंस को क्राइटेरिया बनाकर बदलाव कर सकती है। पार्टी ने उन नेताओं को किनारे कर सकती है जो गुजरात से वाराणसी की चुनाव ड्यूटी पर रहे थे। इनमें भूपेंद्र पटेल के कई कैबिनेट मंत्री और संगठन के ओहदेदार हैं। वाराणसी में पीएम की जीत का मार्जिन बढ़ने और बराबर रहने की बजाय घट गया था।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पूरे देश के लोगों के मन पर असर डाला है। गुजरात में इसका असर है। अगर गुजरात में बीजेपी को अपना दबदबा बरकरार रखना है तो वक्त रहते हुए कड़े फैसले लेने पड़ेंगे। नहीं तो मर्ज बढ़ता जाएगा। कांग्रेस ने पिछले कुछ महीनों में अपना चरित्र बदला है। गुजरात में लोग विपक्ष से जिस भूमिका की अपेक्षा कर रहे थे। कांग्रेस अब उसी रुप में दिख रही है। यही वजह है कि राजकोट जो बीजेपी का गढ़ है वहां पर पार्टी बंद कराने में सफल रही। कांग्रेस मुद्दों की राजनीति पर लौटी है। जमीन पर पार्टी ने शादी की जगह रेस वाले घोड़े भी उतारे हैं।
सहानुभूति कार्ड खेल रही है कांग्रेस
राज्य में जब से राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने कमान संभाली हैं तब से पार्टी ने जनता के मुद्दों पर फोकस किया है। 2022 में करारी हार के बाद गोहिल कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख बने थे। उन्होंने एक साल का कार्यकाल पूरा किया है। इसमें पार्टी ने चार विधायक जरूर खोए हैं लेकिन उन्होंने लोकसभा कांग्रेस के शून्य को खत्म कर दिया है। गोहिल नई कांग्रेस गढ़ते हुए दिख रहे हैं। उनकी मजबूती यह है कि वह राहुल गांधी के विश्वासपात्र हैं। अब कांग्रेस ने 1 अगस्त से न्याय यात्रा का ऐलान किया है। इसमें बड़े नेताओं को बुलाने की तैयारी है।
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