भाजपा और संघ परिवार की नफरत फैलाने की मुहिम में फेसबुक साझेदार और रिलायंस निवेशक
रायपुर। फेसबुक मामले में तीखी टिप्पणी करते हुए संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने पूछा है कि फेसबुक का ऐसा कौन सा व्यवसायिक हित है जो धर्म से धर्म को लड़ाने और भारत के वातावरण में नफरत का जहर घोलने से फलता फूलता है ? यह बात भी देश के लोगों को जानने का अधिकार है कि फेसबुक इंडिया की पब्लिक पालिसी एवं गवर्नमेन्ट रिलेशन हेड अंखी दास के साथ, भाजपा नेत्री और श्रछन्।ठटच् की पूर्व अध्यक्ष रश्मि दास से क्या संबंध है। रश्मि दास ने श्रछन् हिंसा को सही ठहराया था तब भी फेसबुक ने उनपर कार्यवाही नहीं की थी। फेसबुक भाजपा की मानवीय आंकड़ों की हवस को पूरा करती है। भाजपा की अनैतिकता की पराकाष्ठा और चुनावी लोकतंत्र में किसी भी हद तक जाकर सफलता पाने की लालसा से फेसबुक का गहरा रिश्ता है।
उन्होंने कहा है कि भाजपा और संघ परिवार की नफरत फैलाकर धर्म से धर्म को लड़ाने की मुहिम में फेसबुक साझेदार और रिलायंस समूह निवेशक है। भाजपा, फेसबुक और रिलायंस समूह तीनो मिलकर देश की जनभावना के साथ खेल रहे हैं और जन विमर्श पर अतिक्रमण कर रहे हैं।
त्रिवेदी जी ने आरोप लगाया है कि भारत की जनता से कमाई के बावजूद फेसबुक भारत सरकार को सर्विस और इनकम टैक्स नहीं देती है। फेसबुक के आंकड़ों के गणितीय मॉडल और डिजिटल तकनीक के गठजोड़ से भारत में गैरबराबरी और गरीबी बढ़ सकती है, लोकतंत्र खतरे में है। संवेदनशील सूचना के साइबर बादल (कम्प्यूटिंग क्लाउड) क्षेत्र में उपलब्ध होने से देशवासियों, देश की संप्रभुता व सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है। किसी भी डिजिटल पहल के द्वारा अपने भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के उपर किसी दूसरे भौगोलिक क्षेत्र के तत्वों के द्वारा उपनिवेश स्थापित करने देना और यह कहना कि यह अच्छा काम है, देश हित में नहीं हो सकता है। उपनिवेशवाद के प्रवर्तकों की तरह ही साइबरवाद व डिजिटल इंडिया के पैरोकार खुद को मसीहा के तौर पर पेश कर रहे हैं और बराबरी, लोकतंत्र एवं मूलभूत अधिकार के जुमलों का मंत्रोच्चारण कर रहे हैं। ऐसा कर वे अपने मुनाफे के मूल मकसद को छुपा रहे हैं। वेब आधारित डिजिटल उपनिवेशवाद कोरी कल्पना नहीं है यह उसका नया संस्करण है।
इन खुलासों से यह स्पष्ट हो गया है कि आंकड़ों वाली कंपनियों और उनके विशेषज्ञों में और अपराध जगत के माफिया तंत्र के बीच मीडिया में परिष्कृत प्रस्तुतिकरण का ही फर्क है। चुनावी भ्रष्टाचार और निजी संवेदनशील सूचना की नींव पर गढ़े गये मनोवैज्ञानिक ग्राफ में कोई अंतर नहीं है, इस पर नकेल कसना जरूरी है।
प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार व वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक फेसबुक भाजपा नेताओं की नफरत और हिंसा भरी पोस्ट को इसलिए नहीं हटा रहा है क्योंकि इससे भाजपा नाराज हो सकती है और भारत में फेसबुक के व्यवसायिक हितों पर फर्क पड़ सकता है। कांग्रेस ने इसकी संसदीय समिति से जांच करवाने की मांग की है। संसद की स्थायी समिति भी इस रिपोर्ट की जांच करेगी और फेसबुक के अधिकारियों को तलब करेगी।
भाजपा, फेसबुक और रिलायंस समूह का गठबंधन देश की जनभावना के साथ खिलवाड़ कर रहा है। फेसबुक का दुरूपयोग कर जनता के विचारों पर भाजपा के अतिक्रमण की साजिश बेनकाब हुई।
शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि 2014 के बाद से भाजपा और मोदी जी के कृपा पात्र औद्योगिक घरानों की संपत्ति में ही लगातार उछाल आ रहा है। हाल ही में जियो प्लेटफॉर्म्स लिमिटेड ने फेसबुक में 43,574 करोड़ रुपये निवेश किया है। वॉट्सअप को भी फेसबुक द्वारा खरीदा जा चुका है। देश में फेसबुक के 28 करोड़ और व्हाट्सएप के 40 करोड़ यूजर हैं। फेसबुक पर भाजपा नेताओं द्वारा नफरत फैलाने के कुचक्र को फेसबुक द्वारा कथित रूप से निजी व्यावसायिक कारणों से रोका नहीं जा रहा है। वॉट्सअप में तो रोकने और शिकायत करने की कोई सुविधा ही नहीं है।