एनिमिया और कुपोषण प्रबंधन के लिए स्वसहायता समूहों की महिलाओं की भागीदारी जरुरी
दुर्ग। सुपोषण अभियान से समुदाय को जोड़ने के लिए स्वसहायता समूहों की महिलाओं के साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार बैठक आयोजित की जा रही हैं ताकि कोरोना संक्रमण के इस दौर में कुपोषण, एनिमिया और डायरिया से बचाव के लिए घर-घर प्रबंधन के उपाय किए जा सकें। आज तीनदर्शन परिक्षेत्र भिलाई की आगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा स्वसहायता समूह की बैठक लेकर पोषण अभियान के अंतर्गत जानकारी प्रदान की गई।
एकीकृत बाल विकास परियोजना भिलाई के तीनदर्शन परिक्षेत्र की महिला पर्यवेक्षक श्रीमती उषा झा ने बताया पोषण माह में आंगनबाडी कार्यकर्ता एवं सहायिका प्रतिदिन गृहभेंट के माध्यम से भी बच्चों और महिलाओं के पोषण आहार को ध्यान रखने के लिए चर्चा कर रही हैं। आंगनबाडी कार्यकर्ताओं द्वारा स्वसहायता समूह की बैठक लेकर संकमण, कुपोषण, एनीमिया और डायरिया से बचने के उपाय बताये जा रहे है। साथ ही छोटी-छोटी गतिविधियों जैसे सामूहिक बैठक लेकर स्थानिय स्त्रोतों के प्रदर्शन के माध्यम से हितग्राहियों को उचित खानपान, हाथ धुलाई, साफ-सफ़ाई, पोषण वाटिका, ओआरएस बनाने की विधि एनीमिया और कुपोषण से बचाव आदि की जानकारी दे रही है। पोषण आधारित व्यवहार को लेकर समुदाय स्तर पर जनजागरुकता लाने पौष्टिक भोजन से मिलने वाले विटामिन और मिनरल्स के महत्व को बताए जा रहे हैं।
ऊषा झा ने बताया कुपोषण से बचाव के लिये शैशवाबस्था से ही पोषण पर परिवार को सचेत रहना चाहिए प्रायः शिशुओ में 6 माह के बाद पेाषण की कमी देखी गई है। पूरक पोषण आहार इसीलिए आवश्यक हो जाता है बच्चों के मस्तिष्क का विकास प्रथम 5वर्ष तक होता है। इस दौरान हुए कुपोषण का प्रभाव केवल शारीरिक कमजोरी ही नहीं मानिसक विकास को भी प्रभावित करता है। बचपन में ही संतुलित एवं पौष्टिक खानपान से व्यक्ति का शरीर मजबूत और अधिक श्रम करने में सक्रिय रहता है।
कुपोषण से प्रतिरोधक क्षमता में कमी –
शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। अत: कुपोषण की जानकारियाँ होना अत्यन्त जरूरी है। कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। इसके अलावा ऐसे कई रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असन्तुलित भोजन होता है।
हमारे समाज में स्त्रियाँ अपने स्वयं के खान-पान पर ध्यान नहीं देतीं। जबकि गर्भवती स्त्रियों को ज्यादा पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। उचित पोषण के अभाव में गर्भवती माताएँ स्वयं तो रोग ग्रस्त होती ही हैं साथ ही होने वाले बच्चे को भी कमजोर और रोग ग्रस्त बनाती हैं।
एनिमिया यानी खून की कमी –
एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी होना। शरीर में हिमोग्लोबिन एक ऐसा तत्व है खून की मात्रा बताता है। पुरुषों में इसकी मात्रा 12 से 16 ग्राम तथा महिलाओं में 11 से 14 ग्राम के बीच होना चाहिए। खून की कमी तब होता है, जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है। किशोरावस्था और रजोनिवृत्ति के बीच की आयु में एनीमिया सबसे अधिक होता है। गर्भवती महिलाओं को बढ़ते शिशु के लिए भी रक्त निर्माण करना पड़ता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को एनीमिया होने की संभावना होती है। एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की प्रसव के दौरान मरने की संभावना सबसे अधिक होती है।
एनिमिया के लक्षण व निवाराण –
एनिमया के लक्षण आमतौर पर सामान्य होते हैं। एनिमिया पीड़ित के त्वचा का सफेद दिखना। जीभ, नाखूनों एवं पलकों के अंदर सफेदी। कमजोरी एवं बहुत अधिक थकावट। चक्कर आना- विशेषकर लेटकर एवं बैठकर उठने में। बेहोश होना। सांस फूलना। हृदयगति का तेज होना। चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना। ये लक्षण हो तब नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक से परामर्श लेना जरुरी है। एनिमिया के सबसे बड़े कारण में लौह तत्व वाली चीजों का उचित मात्रा में सेवन न करना।
एनिमिया के रोकथाम के लिए अगर एनीमिया मलेरिया या परजीवी कीड़ों के कारण है, तो पहले उनका इलाज करें। आयरन-युक्त पदार्थ का सेवन और भोजन में विटामिन ‘ए’ एवं ‘सी’ युक्त खाद्य पदार्थ खाएं। शरीर में स्वस्थ लाल रक्त कण बनाने के लिए फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है। फोलिक एसिड के लिए गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां, मूंगफली, अंडे, दाल व आलू जरुरी होता है। मूली, गाजर, टमाटर, शलजम, खीरा जैसी कच्ची सब्जियां प्रतिदिन खानी चाहिए। अंकुरित दालों व अनाजों का नियमित प्रयोग करें।