मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं के खिलाफ संयुक्त यूनियन ने काला झंडा लेकर किया प्रदर्शन
सूचनाजी न्यूज, भिलाई।वर्ष 2019 में संसद के शीत सत्र में पारित की गई वेतन संहिता 2019 तथा वर्ष 2020 में संसद के मानसून सत्र में पारित की गई 3 संहिताए -औद्योगिक संबंध कोड 2020, सामाजिक सुरक्षा कोड 2020 तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियां (ओएसएच) कोड 2020, वापस लेने की मांग को लेकर आज पूरे देश में काला दिवस मनाया गया इसी के तहत भिलाई में इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, ऐक्टू, लोईमू ने संयुक्त रूप से काला झंडा दिखाकर विरोध प्रदर्शन किया
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लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ताक पर रखकर पारित किए थे यह सभी बिल
इन श्रम संहिताओं को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों तथा समस्त मजदूर वर्ग के कड़े विरोध के बावजूद मात्र 3 दिनों में अन्य बिलों के साथ संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत कर अधिनियमित किये गए थे । बिल को संसद में प्रस्तुत करने से पहले सर्वोच्च त्रिपक्षीय मंच, भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी) में भी इन पर कोई चर्चा नहीं हुई, साथ ही वेतन कोड के अलावा अन्य सभी कोड 23 सितंबर 2020 को पारित किये गए, जब पूरा विपक्ष संसद की अलोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का विरोध करते हुए अनुपस्थित था. इस प्रकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पूरी तरह से नजर अंदाज कर के ये कोड लाये गए हैं
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अंग्रेजों से लड़कर हासिल किए गए अधिकारों को खत्म कर रहा है यह कानून
हम देश के श्रमिक इन संहिताओं का कड़ा विरोध करते हैं, जो अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्ण बलिदानों और लड़ाइयों के माध्यम से अर्जित हमारे मौजूदा कानूनी अधिकारों को नष्ट करने के औजारों के अलावा और कुछ नहीं हैं।
ये संहिताएं नियोक्ताओं को असीमित स्वतंत्रता प्रदान करते हैं. कोड यूनियन बनाने, सौदेबाजी करने और हड़ताल करने के हमारे अधिकारों को गंभीर रूप से सीमित करते हैं ।
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न्यूनतम मजदूरी की अवधारणा को खत्म करने पर तुला है केंद्र सरकार
सरकार फ्लोर वेज की अवधारणा को लाकर न्यूनतम मजदूरी के हमारे अधिकार को कमजोर करते हैं । रैप्टा कोस ब्रेट जजमेंट के आधार पर न्यूनतम मजदूरी पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को खत्म कर दिया गया है और सरकार को न्यूनतम मजदूरी की गणना को कमजोर करने की स्वतंत्रता दे दी गई है ।
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मजदूरों को कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर कर देगा यह श्रम संहिताएं
सरकार निरीक्षण और प्रवर्तन तंत्र को गंभीर रूप से कमजोर कर रहा हैं प्रयोज्यता और छूट भी सरकारी अधिकारियों की मर्जी पर छोड़ दिये गए हैं और मजदूरों को बड़े पैमाने पर किसी भी कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर करना यानी बहिष्कारण संभावित है। महिला श्रमिकों के समान पारिश्रमिक, मातृत्वलाभ और कार्यस्थल पर क्रेच सुविधाओं जैसे अधिकारों को भी कोड के तहत कमजोर किया गया है। सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा को उलट दिया गया है और जिम्मेदारी नियोक्ता से श्रमिकों पर स्थानांतरित की जा रही है।ये तो बस एक झलक है।
कामगारों को गुलामी की तरफ धकेल देगा यह लेबर कोड
यदि कोड लागू किये जाते हैं, तो वर्तमान कार्यबल गुलामी में धकेल दिया जाएगा, जो देश में 64 करोड़ से अधिक है. इतने व्यापक प्रभाव वाले कानूनों को उचित चर्चा के बिना लागू नहीं होने दिया जाना चाहिए और उन्हें निरस्त किया जाना चाहिए ।इसलिए हम देश के श्रमिक वर्ग, भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि चार मजदूर विरोधी लेबर कोड को निरस्त करें. ये कोड देश के कामकाजी लोगों के जीवन और अधिकारों के लिए विनाशकारी हैं। कानूनों पर चर्चा करने के लिए जल्द से जल्द भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी) बुलाया जाए।
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