रिसाली में श्रीमद्भागवत कथा का दूसरा और तीसरा दिन: भक्ति और ज्ञान का संदेश
श्री कृष्ण भक्ति का महत्व: निष्काम और निरंतर भक्ति से जीव का कल्याण
शुकदेव जी और परीक्षित संवाद: मृत्यु के समय भगवान की स्मृति बनाए रखने का महत्व
विविध कथाएँ: ध्रुव जी और जड़ भरत जी की प्रेरणादायक कहानियाँ
रिसाली-भिलाई। रिसाली के दशहरा मैदान में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन में सुश्री गोपिकेश्वरी देवी जी ने भक्तों को कल्याण के मार्ग के बारे में बताया। उन्होंने सूत जी और शौनकादि ऋषियों के प्रसंग से कथा आरंभ की और समझाया कि इस कलियुग में जीवों के कल्याण का सर्वोत्तम साधन श्रीमद्भागवत पुराण है। उन्होंने श्री कृष्ण भक्ति की महिमा पर जोर देते हुए कहा कि निष्काम और निरंतर भक्ति से ही जीव अपने विकारों पर विजय प्राप्त कर सकता है।
गोपिकेश्वरी देवी जी ने भक्तों को समझाया कि भगवान का चिंतन अष्ट पहर होना चाहिए। आधे घंटे के भक्ति में लगे और बाकी समय संसार में मन लगाया, तो वास्तविक कल्याण संभव नहीं है। कथा के दौरान शुकदेव जी के संसार में प्रकट होने और परीक्षित जी के जन्म का वर्णन भी किया गया।
तीसरा दिन: परीक्षित और शुकदेव संवाद में मोक्ष का रहस्य
तीसरे दिन कथा में शुकदेव जी और परीक्षित जी के संवाद का प्रसंग प्रस्तुत किया गया। परीक्षित जी ने संसार के जीवों के कल्याण के लिए क्या करना चाहिए, यह प्रश्न किया। इसका उत्तर देते हुए शुकदेव जी ने बताया कि भक्तवत्सल श्री कृष्ण की भक्ति से ही जीव का कल्याण संभव है। उन्होंने यह भी बताया कि वेदों, यज्ञों, योग और समस्त कर्मों का अंतिम उद्देश्य श्रीकृष्ण ही हैं।
शुकदेव जी ने कहा कि भगवान की भक्ति से ही अनर्थों की शांति मिलती है और यही कारण है कि परमहंसों ने श्रीमद्भागवत की रचना की, जिससे जीवों के शोक, मोह और भय नष्ट हो जाते हैं। परीक्षित जी के साथ संवाद के दौरान शुकदेव जी ने यह भी बताया कि मृत्यु के समय भगवान की स्मृति बनी रहे, यही श्रीमद्भागवत कथा का लाभ है।
आगे की कथा में सृष्टि के विस्तार का वर्णन किया गया, जिसमें मनु महाराज और महारानी शतरूपा की संतानों की कथा, ध्रुव जी के चरित्र और जड़ भरत जी की कथा का भी विस्तार से वर्णन किया गया।
यह श्रीमद्भागवत कथा धार्मिक आस्था, भक्ति और मोक्ष के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाली साबित हो रही है।