R.O. No. :
छत्तीसगढ़

कांग्रेस की नजर दलित वोटर पर




 

नई दिल्ली । कांग्रेस नेता राहुल गांधी 18 जनवरी को संविधान सुरक्षा सम्मेलन में शामिल होने पटना पहुंचे थे, और अब 5 फरवरी को जगलाल चौधरी जयंती में शामिल होने पटना पहुंचे थे। दरअसल एक छोटे से अंतराल पर राहुल गांधी का बिहार बार-बार जाना इसलिए भी दिलचस्प हो गया हैं, क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जो स्टैंड रहा है, बिहार चुनाव तक इंडिया ब्लॉक का मामला बहुत टिकाऊ नहीं लगता। जगलाल कांग्रेस के दलित नेता रहे हैं, और उनके नाम पर कांग्रेस का बिहार में कार्यक्रम कराना, और उसमें भी दिल्ली से पटना पहुंचकर राहुल गांधी का शामिल होना, यूं ही नहीं सकता। दरअसल साफ है कांग्रेस की नजर दलित वोटर पर है, और ये सब दलित वोट बैंक को साधने के लिए हो रहा है। ओबीसी वोट के लिए जातिगत जनगणना की मुहिम, राहुल गांधी पहले ही चला ही रहे हैं। क्योंकि राहुल गांधी की मुहिम का असर भी देखने को मिला है, अगर ऐसा नहीं होता तब संसद में ही राहुल गांधी के बयान का समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव संसद में ही जवाब क्यों देते। दिल्ली चुनाव में भी कांग्रेस का खास जोर दलित और मुस्लिम वोटर पर दिखाई दिया है।
देखने वाली बात ये हैं कि महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी का मामला है, लेकिन कांग्रेस हाल फिलहाल जिस रणनीति पर चल रही है, वहां मौजूदा राजनीतिक समीकरणों से दो कदम आगे की बात लगती है। अब कांग्रेस क्षेत्रीय दलों का पिछलग्गू बनने के बजाय अपने दम पर खड़े होने की कोशिश में जुटी है। क्षेत्रीय दलों की तरफ से बार बार कांग्रेस नेतृत्व को सलाह मिलाती रहती है कि वे ड्राइविंग सीट पर काबिज होने की कोशिश छोड़ दे। ड्राइविंग सीट कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के हवाले कर दे, लेकिन राहुल क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को ही खारिज कर देते हैं, और कांग्रेस की बराबरी में खड़े होने ही नहीं देना चाहते। अब ऐसा लगाता है कि बिहार में भी दिल्ली की ही तरह कांग्रेस अपने दम पर लड़ेगी और तेजस्वी यादव की आरजेडी को ममता बनर्जी और अखिलेश यादव दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तरह समर्थन दे सकते हैं। आखिर इंडिया ब्लॉक में ममता बनर्जी को लालू यादव का सपोर्ट, और राहुल गांधी का बिहार की जातिगत गणना को फर्जी करार देना कुछ न कुछ असर कमाल करेगा।
अखिलेश प्रसाद सिंह जब से बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं, कांग्रेस के भीतर ही उनका काफी विरोध देखने में मिल रहा है। कई नेता साथियों के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले जाने की तोहमत भी उनके ही माथे मढ़ रहे हैं। लेकिन, जरूरी नहीं कि ये चीजें उनके लिए नुकसानदेह भी साबित हों।

 







Previous articleकरीब 15 दिनों तक बंगाल में रहने का कार्यक्रम
Next articleमतदाताओं ने 2025 के इस चुनाव में जमकर मतदान किया


Related Articles

Back to top button