मेहर समाज के जाति प्रमाण पत्र का अतिशीघ्र निराकरण हों : देवेन्द्र लहरी
रायपुर। आज छत्तीसगढ़ राज्य को बने उन्नीस बरस बीतने जा रहें हैं!लेकिन यहां के मूल निवासी छत्तीसगढ़ मेहर समाज 222 के लोगों का आज भी जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है। यही कारण है कि आजादी के 72 साल बाद भी अनुसूचित जाति के अंतर्गत आने वाले छत्तीसगढ़िया मेहर समाज जाति प्रमाण पत्र के अभाव में आज भी आरक्षण के लाभ से कोसों दूर है।
आजादी के बाद सरकार द्वारा अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों का जीवन स्तर उठाने, जातिगत भेद-भाव से ऊपर समानता का अधिकार दिलाने समाज के शोषित व पिछड़ों को विकास की मुख्य धारा में लाने हेतु आरक्षण का संवैधानिक अधिकार दिया गया है परन्तु जाति प्रमाण पत्र बनाने में आने वाली अनेक विसंगतियों का उचित समाधान नहीं होने के कारण लोगों के जीवन में आज भी बदलाव नहीं आया है यही कारण है कि आरक्षित वर्ग के अनुसूचित जाति में आने वाली मेहर जाति के लोग शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक,आर्थिक रूप से आज भी पिछड़े हुए हैं।सरकार बदलते रहे हैं लेकिन मेहर समाज की दशा और दिशा नहीं बदली!युवा प्रकोष्ठ के प्रदेश प्रवक्ता देवेन्द्र लहरी ने बताया 1 नवम्बर 1956 में जब मध्यप्रदेश राज्य बना तब 42-43 जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा गया जो कि मध्यप्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र में आते थे। परन्तु 1नवम्बर 2000 को जब छत्तीसगढ़ राज्य का अभ्युदय हुआ तब सरकार को चाहिए था कि छत्तीसगढ़ के मूल निवासी जो छत्तीसगढ़ के दायरे में आते हैं उन्हे छत्तीसगढ़ राज्य के अनुसूचित जाति,जनजाति के सूची में रखना था ताकि यहां के मूल निवासियों को आरक्षण का लाभ मिल सके लेकिन वही पुरानी सूची छत्तीसगढ़ मे भी लागू कर दिया गया है। परिणाम स्वरूप यहां के मूलनिवासी शिक्षा रोजगार व आरक्षण के लाभ से अन्य प्रदेश से आये हुए प्रवासियों की तुलना में पिछड़ गये।
दूसरी बात जाति प्रमाण पत्र बनाने सरकार द्वारा 1950 के जमीन का रिकार्ड मांगा जाने लगा जबकि मेहर समाज के अधिकांश लोग घुमन्तु जीवन व्यतीत करने वाले होने के कारण उनके पास जमीन ही नहीं होता था तो वह 1950 का रिकार्ड कहां से लाते। तीसरी बात कुछ लोगों के पास जमीनें थी परन्तु उस समय तो जनगणना करने और जो शासन-प्रशासन के नुमाइंदे होते थे वो अनुसूचित परिवार के लोगों की जाति या तो अपनी मर्जी से उनके व्यवसाय के आधार पर या गांव के दबंग लोगों के कहने पर अपमानित शब्दों का प्रयोग कर विसंगति पूर्ण जाति लिखवा देते थे। यही हाल स्कूल के दर्ज पंजीयन में भी आपत्तिजनक शब्दों को जाति में दर्ज कर देते थे परिणाम स्वरूप आज शासन जब जाति के सम्बन्ध में प्रमाणित दस्तावेज की मांग करती है तो मेहर समाज के लोगों की जाति अनेक प्रकार के नामों से प्राप्त हो रही है अतः जाति प्रमाणपत्र बनाने वाला अधिकारी जाति विसंगति बता कर मेहर जाति के नाम से प्रमाण पत्र नहीं बना रहा है। अतः लोग थक हार कर जाति प्रमाण पत्र के अभाव में आज भी पिछड़ा एवं दयनीय जीवन जीने को मजबूर है।फिलहाल सरकार द्वारा ग्राम सभा से प्रास्थिति प्रमाण पत्र के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनाने आदेशित किया गया है किंतु स्थाई प्रमाण पत्र बनाने में फिर वही 1950 के जाति लिखित दस्तावेज को आधार बनाने से जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है। क्योंकि पूर्वजों के मिसल व टीसी आदि प्रमाण पत्र में आपत्तिजनक जाति जैसे- चमार, पैकाहा, कनोजिया, कन्नौजिया, कनौजिया मेहर, सतनामी, मोची आदि नाम दर्ज है जबकि यह समाज “मेहर जाति” के रूप में व्यवसाय व कार्य के अनुरूप पंजीकृत है। साथ ही लोकसभा में भी संशोधन किया गया है। लेकिन प्रमाण पत्र बनाने वाले मिसल, पटवारी या स्कूल सर्टीफिकेट में “मेहर” जाति की लिखित कापी मांग रहे हैं। यही कारण है कि मेहर समाज आरक्षण के लाभ से वंचित अशिक्षा गरीबी और पिछड़ेपन की ज़िदगी से उबर नहीं पा रहा है। चौथी बात वह यह कि छग सरकार द्वारा मेहर जाति का सर्वे कराया गया जिसमें जो अधिकारी सर्वे करने गया था वह रायगढ़ बेल्ट में ही सर्वे करके शासन में मेहर जाति को बुनकर जाति अर्थात् कोष्टा जाति निरूपित कर दिया है।पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह से जब इस बारे में चर्चा की गई तो तत्कालिन उनके प्रमुख सचिव से समाज प्रमुख प्रतिनिधी की भेंट करायी गई तो उस अधिकारी ने भी इस बात को संज्ञान में लिया कि रायगढ़ में जो मेहर लिखते हैं जो की देवांगन, कोष्टा, बुनकर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं उन्हे ही मेहर मानकर आरक्षित मेहर समाज का व्यवसाय बुनकर दर्ज कर दिया गया है जो कि आज तक सुधार नहीं किया गया है। जबकि लोक सभा का अमेण्डमेंट कापी मेहर समाज हर बार हर मंत्री, सचिव व शासन प्रशासन को सौंपते आ रहे है। इसके बावजूद भी मेहर समाज के लोगों का मेहर जाति के नाम से जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा हैं! जब तक विसंगतिपूर्ण जाति को विलोपित कर मेहर जाति का प्रमाण पत्र नहीं बनाया जाता तब तक इस समाज को विकास की मुख्यधारा में नहीं लाया जा सकता।सरकार से यही निवेदन है कि मेहर समाज की समस्या को गम्भीरता से ले और सहानुभूति पूर्वक विचार कर जितने भी मेहर समाज के लोगों को जो विभिन्न नामों से उल्लेख किया गया है उसे संशोधित करते हुए उन तमाम विसंगतिपूर्ण जाति के स्थान पर एक रूपता के लिए मेहर जाति के प्रमाण पत्र बनाने का विधिवत आदेश पारित करे ताकि शोषित पिछड़े गरीब समाज का उत्थान और कल्याण हो सके।जबकि आरक्षण का नहर समाज के अंतिम छोर तक आज भी नहीं पहुँचा हैं। एक गांव में दो चार घर की आबादी में निवास करने वाला समाज आज भी अनेक प्रकार की यातनाओं, भेद-भाव व तिरस्कारों से गुजर रहा हैं!अगर सरकार वास्तविकता से रूबरू होना चाहती हैं। तो उच्च स्तर के जाँच कमेटी से निष्पक्ष जांच कराये तो वस्तु स्थिति स्पष्ट मालूम पड़ जाएगा। अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ के संवेदनशील सरकार से आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास हैं!कि अब समाधान होकर ही रहेगा और मेहर जाति को आरक्षण का लाभ देकर मेहर समाज को विकास के मुख्यधारा में लाने की प्रतिबद्धता को साकार करेंगे।