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बंधुआ मजदूर पाते हैं 1000 से ज्यादा, यहां पेंशन मिल रही 1 हजार

  • पेंशनर बोले-भाजपा या कांग्रेस दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों ही कर्मचारी विरोधी हैं। सिर्फ़ अपने वोट बैंक की परवाह करते हैं।

सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (Employee Pension SCheme 1995)। सरकार की स्कीम का फायदा कर्मचारियों को मिलता है। लेकिन, न्यूनतम पेंशन को लेकर काफी मायूसी है। न्यूनतम पेंशन करीब 1 हजार रुपए खाते में आती है। इसको लेकर पेंशनर्स खासा भड़के हुए हैं। एक पेंशनभोगी ने यहां तक बोल दिया कि बंधुआ मजदूर भी 1 हजार से ज्यादा पाते होंगे, यहां तो हमें इतनी पेंशन के रूप में मिल रही है।

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लोकसभा में शिवसेना के सांसद द्वारा पेंशन का मुद्दा उठाया गया। इस पर पेंशनभोगी त्रिपुरारी सरन ने कहा-आप लोग मुद्दा उठा रहे हैं। सरकार पर कोई असर न होगा। बुजुर्गों को बंधुआ मजदूर समझ कर रखा गया है।

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एक अन्य पेंशनभोगी CP Tiwari लिखते हैं-सरकार की ईपीएस 95 पेंशनर्स (EPS 95 Pensioners) के मिनिमम पेंशन वृद्धि के प्रति उदासीनता, लगातार ईपीएस 95 पेंशनर्स संघर्ष समिति (EPS 95 Pensioners Sangharsh Samiti) द्वारा आश्वासनों पर तुरंत आंदोलन रोकने के कारण ईपीएस 95 पेंशनर्स आंदोलन मरणासन्न अवस्था में आ गया है। बीजेपी सरकार कमांडर अशोक रावत की इस कमजोरी का भरपूर इस्तेमाल कर रही है। कमांडर अशोक रावत के पास सांसदों के मुंह ताकने के अलावा और कुछ बचा नहीं है।

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ईपीएस 95 पेंशनर्स (EPS 95 Pensioners) की पेंशन वृद्धि का मसला अभी तक हल न निकलने के कारण बार-बार आंदोलन शुरू करना व सांसदों के आश्वासनों पर बार-बार भरोसा करने के कारण आठ वर्षों तक का समय बर्बाद होना है। जबकि किसान आंदोलन ससक्त होता चला गया। ऐसा क्यों होता चला गया कृपया आंदोलन को संचालित करने वाले नेतागण सोचें।

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पेंशनर सतीश मिश्रा ने कहा-पता नहीं क्यों वरिष्ठ नागरिक इस या उस सरकार से सकारात्मक उम्मीद करते हैं। इस तथ्य को स्वीकार करें कि हम सरकार की खूनी आँखों में धूल झोंकने वाले सिर्फ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भाजपा या कांग्रेस दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों ही कर्मचारी विरोधी हैं। सिर्फ़ अपने वोट बैंक की परवाह करते हैं।

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सनत रावल ने कहा-सरकार पर कोई असर नहीं। बहरी, गूंगी और अंधी सरकार। किसानों की तरह ईपीएस-95 पेंशनभोगी/वरिष्ठ नागरिक भी राष्ट्र निर्माण में योगदान देते हैं, तो सरकार कुछ क्यों नहीं सुनती?

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