विशेष लेख: प्रकृति का पुनर्वास…. नंदिनी खनन क्षेत्र को मानव निर्मित जंगल के रूप में संजीवनी
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दुर्ग। विकास के लिए संसाधनों का तेजी से इस्तेमाल आवश्यक है। इसके साथ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि संसाधनों के उपयोग की वजह से धरती में जो क्षरण हुआ है उसकी भरपाई भी की जाए ताकि सहज संतुलन के माध्यम से विकास भी होता रहे और प्रकृति भी संतुलित रहे। इस दृष्टिकोण से नंदिनी क्षेत्र में निष्प्रयोज्य खदानों में जिस तरह मानव निर्मित जंगल की पहल की गई है और इसे मूर्त रूप दिया गया है। वो बेहद स्वागत योग्य कदम है। नंदिनी क्षेत्र के 2500 एकड़ क्षेत्र में यह मानव निर्मित जंगल बनाया गया है। यह प्राकृतिक परिवेश की सारी जरूरतों को पूरा करता है। जंगल के निर्माण में विविधता का पूरा ध्यान रखा गया है। तरह-तरह की वनस्पतियां इस जंगल को बेहद आकर्षित बनाती हैं। अभी 83 हजार पौधे लगाये गये हैं। जब यह पौधे पूरी तरह बड़े हो जाएंगे और जंगल अपना आकार ले लेगा तब बिल्कुल मैदानी भूमि में यह सबसे बड़ा जंगल होगा। जंगल में पक्षियों के रहवास का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा। यहाँ झील के पास ऐसे पौधों का चयन किया गया है जहाँ पक्षियों के घोंसलों के लिए और उनके अंडे देने के लिए अनुकूल माहौल होगा। इससे पूरे जंगल के पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित होने की भी भरपूर संभावना है। वैसे भी छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के मामले में काफी समृद्ध है। संस्कृत कवियों ने खंजन जैसे पक्षियों का जिक्र किया है। वे इस सुंदर धरती में आते रहे हैं। भविष्य में ऐसा अनुकूल प्राकृतिक परिवेश मिलने पर न केवल वे यहां आकर्षित होंगी अपितु नेस्टिंग की बेहतर सुविधा उपलब्ध होने से उनकी संख्या भी तेजी से बढ़ेगी। जिले में पाटन में बेलौदी में पक्षी परिक्षेत्र बनाया जा रहा है। बेमेतरा जिले में गिधवा को विकसित किया जा रहा है। उससे पक्षी प्रेमियों के लिए बहुत सुंदर हब के रूप में इस क्षेत्र के विकसित होने की संभावना है। इससे बड़ी संख्या में पक्षी प्रेमियों को भी आकर्षित किया जा सकेगा। इस तरह से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की संभावना भी बढ़ेगी।
नंदिनी प्रोजेक्ट केवल यह नहीं बताता कि छत्तीसगढ़ की सरकार निष्प्रयोज्य खदानों की इको हैबिटेट को पुनः बसाना चाह रही है अपितु इसका स्केल भी महत्वपूर्ण है। इतने बड़े पैमाने पर इस तरह से पौध-रोपण की घटना विरल है जिससे मानव निर्मित जंगल बस जाए। जगह का चुनाव भी शानदार है। खदानों की वजह से बड़ी झील नंदिनी में बनी है। यह झील इस मानव निर्मित जंगल की सबसे खूबसूरत जगह होगी।
दुर्ग जैसे औद्योगिक प्रधान जिले में इस तरह का मानव निर्मित जंगल होना प्रदूषण को कम करने में भी सहयोगी होगा। साथ ही यह अन्य निष्प्रयोज्य खदानों के सुंदर उपयोग के लिए भी देश भर के सामने माडल के रूप में उभर सकता है। रायपुर और दुर्ग-भिलाई शहर के नजदीक होने की वजह से इस जगह की पर्यटन संभावनाएं भी काफी दिलचस्प है। इसे इसी रूप में विकसित करने की कोशिश की जा रही है। डीएमएफ के सुंदर उपयोग से किस तरह खनन आधारित क्षेत्रों को संजीवनी दी जा सकती है। नंदिनी मानव निर्मित जंगल इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
सृष्टि एवं मां परमेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह ने आत्मनिर्भर बनने की दिशा में किया बेहतरीन कार्य
आय का जरिया बनाने के लिए किसी ने छत्तीसगढ़ी व्यंजन का रास्ता अपनाया तो किसी ने सिलाई का किया चयन
प्रतिमाह 12 से 15 हजार तक हो रही है आमदनी, शासन की योजना से मिली मदद
दुर्ग। शासन द्वारा संचालित दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के माध्यम से गठित सृष्टि एवं मां परमेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह ने आत्म निर्भर बनने की दिशा में बेहतरीन कार्य किया है। इस बात का अनुमान इनके प्रति माह के आय से लगाया जा सकता है। सृष्टि स्व-सहायता महिला समूह ने सेक्टर-7 वार्ड 66 में 13 सदस्यों को मिलाकर समूह का गठन किया है। समूह के सदस्यों ने आत्मनिर्भर बनने के लिए और आर्थिक रूप से सशक्त होने के लिए प्रारंभिक तौर पर ही लक्ष्य लेकर कार्य करना प्रारंभ किया था। उन्होंने बैंकिंग व्यवहार को प्राथमिकता से अपनाया। प्रतिमाह समूह के सदस्यों ने 100 रुपए प्रति सदस्य जमा करना प्रारंभ किया। समूह की बैठक लेकर बैंकिंग लेनदेन को बढ़ावा देने और आपसी समन्वय से समूह की सहभागिता सुनिश्चित करने का निरंतर प्रयास इन्होंने किया है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में तथा स्वावलंबी बनने के लिए समूह द्वारा स्वयं का रोजगार प्रारंभ किया गया। समूह को निगम ने सहयोग करते हुए केंद्र शासन की योजना अनुसार 10 हजार रुपए आवर्ती निधि उपलब्ध कराई। महिलाओं द्वारा संकलित जमा राशि से छत्तीसगढ़ी व्यंजन अनरसा बना कर घर-घर बेचने का कार्य प्रारंभ किया गया। धीरे-धीरे इस व्यंजन की इतनी प्रसिद्धि मिली कि सेक्टर-06 भिलाई स्थित आंध्रा बेकरी में उन्हें अपने उत्पाद बेचने की सहमति मिल गई और प्रतिमाह 12 से 15 हजार तक आय उन्हें प्राप्त हो रही है। जिससे परिवार के प्रत्येक सदस्य को रोजगार के साथ-साथ जीविकोपार्जन में सहायता मिल रही हैं। इसी तरह से वार्ड क्रमांक 9 कोहका पुरानी बस्ती की मां परमेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह ने 12 सदस्यों को मिलाकर समूह का गठन कियां। प्रारंभिक तौर पर महिलाओं ने प्रति माह 2 सौ रुपए की राशि प्रत्येक सदस्य आपस में एकत्रित कर बैंक में जमा करना प्रारंभ किया। प्रतिमाह बैंकिंग लेनदेन को बढ़ावा देते हुए उन्होंने स्वयं का रोजगार मूलक कार्य करने प्रतिबद्ध होकर सिलाई के कार्य को तवज्जो दी। धीरे-धीरे सिलाई कार्य में बढ़ोतरी होती गई और भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन के श्रमिकों के लिए पैंट, शर्ट, जैकेट इत्यादि के सिलाई का कार्य इन्हें मिलना प्रारंभ हो गया। इस सिलाई कार्य से प्रत्येक सदस्य को प्रतिमाह 10 हजार रुपये से अधिक आय प्राप्त हो रहा है। स्व-सहायता समूह के बैंकिंग लेनदेन मजबूत होने से प्रत्येक सदस्य अपनी संकलित राशि से दैनंदिनी की वस्तुओं को खरीदने तथा अपने परिवार के भरण-पोषण व आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए आत्मनिर्भर हो रहे है।